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कथा के चतुर्थ दिवस पर पहुँचे मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा जी ने पूज्य गुरु जी से प्राप्त किये आशीर्वाद

कथा के चतुर्थ दिवस पर पहुँचे मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा जी ने पूज्य गुरु जी से प्राप्त किये आशीर्वाद

संदीप ठाकुर

भारतवर्ष में पुनः गुरुकुल पद्धति आरंभ होनी चाहिए जिससे आज के बच्चे सांसारिक ज्ञान के साथ साथ आध्यात्मिक ज्ञान को भी प्राप्त कर सकें-: *आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी श्री प्रज्ञानानंद सरस्वती जी महाराज*

आज दिनांक 17 जनवरी 2022 को सिंधु भवन भोपाल में चल रही श्रीमद्भागवत कथा महापुराण के चतुर्थ दिवस मध्यप्रदेश लोकप्रिय मान. गृह मंत्री पूज्य श्री गुरु जी के अनन्य शिष्य पंडित नरोत्तम मिश्रा जी एवं पूर्व मंत्री मध्यप्रदेश शासन एदल सिंह कसाना जी ने व्यास पीठ की पूजन अर्चन कर पूज्य गुरु जी से आशीर्वाद प्राप्त किये,
कथा के प्रारंभ में आज पूज्य गुरु जी ने कहा भारत की ऐतिहासिक शिक्षा नीति जो कि गुरुकुल में रहकर मिलती थी वो संस्कारवान व्यक्तिव का निर्माण करती थी साथ ही संसार में निवासरत लोगों को अध्यात्म से भी जोड़ती थी।
हमारे भारत का ज्ञान व विज्ञान में इतना श्रेष्ठतम है, जो विश्व को सही दिशा की ओर प्रेरित करने के लिये नेतृत्व करने योग्य हैं,संसारिक जीवन मे दो तत्व है नीति और रुचि,नीति जो होती है हितकारक,पोषण,और जीवन संवारने के कार्य करती है,और रुचि उसके विपरीत है जो कि संसार के बंधन के प्रभाव में जकड़ती है जिसमे लोभ,काम,मद से इंसान बन्ध जाता है।

पूज्य गुरु जी ने बताया कि श्रीमद्भागवत कथा महापुराण में भगवान से ज्यादा कथा में भगवान के भक्तों की चर्चा बारबार की गई है,भक्तों के जीवन मे भगवान का होना उनका स्मरण करना जीवन मे दुःखो को हरने के लिये श्रीमद्भागवत कथा में बताया गया है। जो विपत्ति में भी भगवान का भजन कीर्तन कर लेता है उसके जीवन मे विपत्ति समाप्त हो जाती है लेकिन जो जीवन के विपत्ति में भी भगवान नाम का स्मरण नही करता वो व्यक्ति दुर्भाग्यवान होता है। आज कथा में पूज्य गुरु जी ने राधा नाम की महिमा का सुंदर बखान किया,प्रेम की अविरल धारा का नाम ही राधा है,प्रेम की अविरल धारा में प्रवाहित होते होते हम राधा की शक्ति से परिणित हो जाते हैं,जिस तरह शक्ति के बिना सर्वशक्ति मान शिव भी शव हो जाते है,वही राधा के बिना मेरे प्रभु श्री कृष्ण का स्वरूप भी नही हो सकता,ब्रह्म को आधार देने वाला तत्व ही राधा है।

पूज्य गुरु जी ने भगवत रसिकों को शिक्षा दी कि सांसारिक कार्य का निर्वहन करते करते भगवत निष्ठा,गुरु निष्ठा, तथा वेद निष्ठा होते रहना चाहिए,प्रेम में न राग न द्वेष दोनों नही होना चहिये,जगत में जब तक ठोकर नही मिलेगी हम सुधर नही सकते,कौरवों ने पांडव को ठुकराया उन्हें परमपिता परमेश्वर श्री कृष्ण जी की शरणागति मिली,रावण ने विभीषण को ठुकराया तो राम जी मिल गए।
गुरु जी ने आगे बताया कि प्रेम किसी शर्त से किया जा नही सकता,प्रेम बन्धन से भी नही होता,प्रेम में समर्पण का भाव होना चाहिए, प्रेम लेना नही देना होता है,प्रेम में दैन्य भाव का विशुद्धम स्वरूप है,प्रेम से श्रीकृष्ण को पाने के लिए दीनता होनी चहिये,भगवत प्राप्ति के लिये साधन संपत्ति नही दीनता का होना जरूरी है,राग और द्वेष दोनों श्रेष्ठम प्राप्ति के अवरोधक हैं,प्रेम की धारा का श्रेष्ठम स्वरूप ही भगवान की ओर समर्पित करती है,राग व द्वेष के मिट जाने के बाद बचा हुआ तत्व ही भागवत तत्व है,जो कि प्रेम की धारा का श्रेष्ठम स्वरूप ही भगवान की ओर समर्पित करता है।

 

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